It is a story of a 5 years old boy, who wanted to enjoy his childhood but his mother who was scared of corona, didn't allow him to move freely. This short audio story depicts the psychology of a child and also his mother during pandemic.
यह कहानी है एक छोटे से लड़के की, जो रोज़ पार्क जाने की जिद्द करता, फ्रेंड्स के साथ खेलने की जिद्द करता।
और उसकी मां यानी की मैं रोज़, "उसे कोरोना आ जायेगा तुम पे।" का उत्तर देती।
रोज़ उसे शाम 6बजे त्यार करती, चलो बेबी घूमने चलें। वो बहुत शौंक से जाता।
हर बच्चे की तरह वह भी अपने बचपन की उड़ान लेना चाहता। भागना चाहता।
चहकना चाहता।
खुली हवा में सांस लेना चाहता।
ऊंची ऊंची हंसना चाहता।
पर मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि उसका प्यारा छोटा सा बचपन क्या चाहता।
मुझे तो एक ही मतलब है - उसे कोरोना नामक इस राक्षस से बचाना।
शायद हर जिम्मेदार मां की तरह, मैं उसका हाथ पकड़े रखती। जानती थी कि हाथ छोड़ने का मतलब है उसे कोरोना के हवाले कर देना।
और मैं ऐसा बिल्कुल नहीं होने दूंगी।
उसे हाथ पकड़े, मास्क से पूरा ढके, बार बार सैनिटाइज करके, किसी चीज़ को छूने की परमिशन ना देके, आधा घंटा उसे बाहर सक्सेसफुली रख के मुझे बहुत बड़ी अचीवमेंट मिली महसूस होती।
पर अंदर ही अंदर जानती थी कि बहुत देर तक नहीं चला पाऊंगी।
एक साल से ऊपर हो चुका था। ऊब चुकी थी कहते कहते और करते करते।
वो अब न जाने के बहाने ढूंढने लगा। थका हूं, कल जाऊंगा, और ना जाने क्या क्या।
आज उसने सपष्ट बोल दिया। मैं अब पार्क नही जाया करूंगा। मुझे अच्छा नही लगता।
पिछले सारे साल के वो सारे दिन की तस्वीरें आंखों के आगे घूमने लगती।
बेचारा उसका बचपन।
अपने बचपन का मतलब ही खोये जा रहा है।
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Short and cute audio story
Bitter truth these days
Only thing which helps to smile is atleast we are spending time together