नारी की आह
सारी दुनिया घूम के देखी,
पग पग पर हैवान है।
नारी की सम्मान नहीं,
ना कोई पहचान है।
जब धरती पर आई बनकर,
बेटी की इक सुंदर रूप,
कोई कह गया लक्ष्मी उसको,
कोई कह गया उसे कुरूप।
अपनी आंखों से एक
सपना देखा होगा,
अपनी जीवन में खुशनुमा
अरमानों को सींचा होगा।
तोड़ डाला उन हैवानो ने,
उस कली को, जो पुष्प
बनने को तैयार ख़डी थी,
निगल गया उस जीवन को,
जो बड़े मन्नतों से जन्मा होगा।
जिस देश की मिट्टी पर
नारी रूप को पूजा जाता है,
शर्मिंदगी की बात यह है
कि, उसी धरती पर
नारी जिस्म को नोंचा जाता है।
हर युग मे नारी सताई गई,
उसकी आवाज़ को
हर बार दबाई गई,
आज फिर से एक बार,
बाबा की लाडली को
समाज में निचा बताई गयी।
स्वरचित कविता
प्रियंका साव
पूर्व बर्धमान, पश्चिम बंगाल
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Very well written
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