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हां हम एक औरत है
खुद के लिए एक शोहरत है
कवि की कलम बेतहाशा उकेरती
रूप, रंग ,चाल ,ढाल, नैन, नक्श को तोलती
सुंदरता के मायने हमसे ही गुजरते
प्यासे पुरुष बाहरी सौंदर्य को तरसते
कभी ना झांका इन्होंने अंतर्मन में
दफन है कितने ज्वालामुखी सीने में
तोड़ लाऊंगा चांद तारे फलक पर सारे
वादे हजार सजाए आंखों में हमारे
गृहस्ती की डोर थामे पीछे आए तुम्हारे
बदले पैमाने प्रेम के छूमंतर हुए नजारे
शादी के बाद नाज़नीन इन्हें हम दिखती नहीं
सुबह-शाम फरमाइश इनकी रुकती नहीं
सौंदर्य पुजारी , काश जिम्मेदारी को बांटा होता
पल भर को हमारे मन को सहलाया होता
बन ठन के हमारा रहना इन्हें लुभाता
कुरूप होना क्यों अभिशाप बन जाता
जनाब हम भी जज्बाती औरत है
नहीं तुम्हारी खैरात की दौलत है
हमारी अपनी नायाब जिंदगानी है
खुदा ने दिया हक हमें कैसे बितानी है
हमारा अस्तित्व ही हमारी पहचान हो
ख्वाहिश इत्ती सी, छूने वाली नजरों में हमारा मान हो !!!
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